राब्ता
2013-08-29 01:59:02
"कुछ यूँ अपना सब्र आज़मा लूं
कि तेरी ख़ामोश आँखों से बतिया लूं "
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"गुस्सा तुम्हारा बाढ़ सा, रिश्ता अपना कच्चा घर था"
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"मेरा दिल डूब जाने को , तेरे दो आंसू ही काफी थे"
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एक बेताब निगाह मेरी, और मुड़ कर वो देखना तेरा
एक लम्हे में भी प्रेम कहानी कोई मुकम्मल होती है
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खामोश रहती थी जो, वो आँखें तेरी बोलने लगी हैं
पर जो सुन रही हूँ मैं, वो मेरे लिए नहीं है
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जो ढलता है तेरा प्यार इस दिल में, कुछ ढलती हूँ मैं भी साथ में !
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तेरे मेरे बीच यूँ मसाफ़त कोई ख़ास ना थी
सैंकड़ों दरवाज़े थे, बस मेरे हौंसले असीर थे।
(मसाफ़त - दूरी, असीर - कैद)
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खूबसूरत हर तस्वीर मेरी, तेरी नज़र को बयां करती है।
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यादें इतनी कि दिल भर में समेटी नहीं जाती, देखो यूँ आँखों से छलक आती है।
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कुछ 'पलों' की खुशकिस्मती है कि उनके 'गुज़र' जाने के बाद भी ज़िन्दगी उन्हें याद करती है।
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वक़्त ने कहा, काश थोड़ा और सब्र होता। सब्र ने कहा, काश थोड़ा और वक़्त होता।